किसी भी इंसान के लिए अपनी माँ को खोना जीवन का सबसे बड़ा दुःख होता है। अगर माँ की मृत्यु स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में हो तो समाज और सरकार के प्रति आक्रोश होना लाजमी है । साल 1995 में पश्चिम बंगाल के धालाबाड़ी गांव के करीमुल हक की मां को अस्पताल पहुंचने में देर हो जाने के कारण बचाया नहीं जा सका। वह एक घर से दूसरे घर पूरे गाँव में चक्कर काटते रहे पर उनकी मदद को कोई आगे नहीं आया क्योंकि गाँव में किसी के पास भी उनकी माँ को अस्पताल ले जाने का साधन नहीं था।
उस दिन उनके दिमाग में दो ख्याल आये – समाज और सरकार से हमेशा के लिए नफरत करना या अपने जैसे और लोगों की मदद करना । रविन्द्र नाथ टैगोर , मदर टेरेसा , स्वामी विवेकानंद और काज़ी नज़रुल इस्लाम को अपना आदर्श मानने वाले 57 वर्षीय करीमुल हक ने दूसरा रास्ता चुना और तय किया की वह अपने गाँव में कभी किसी को एम्बुलेंस के अभाव में मरने नहीं देंगे । कुछ साल बाद, उनका एक साथी चाय बागान में काम करते हुए खेत पर गिर गया, करीमुल ने उसे अपनी पीठ से बांध दिया और उसे किसी अन्य व्यक्ति की मोटरसाइकिल पर अस्पताल ले गया। और इस तरह शुरू हुई उनकी एम्बुलेंस दादा बनने की कहानी ।
करीमुल ने पैसे उधार लेकर अपना मोटरसाइकिल ख़रीदा और बीमार मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाकर अपने समुदाय की सहायता करने का फैसला किया। उन्होंने आपातकालीन देखभाल की आवश्यकता वाले किसी भी व्यक्ति की सहायता करना शुरू कर दिया, जिसमें वाहन दुर्घटनाओं में घायल लोग, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और अन्य मुश्किलों में फंसे लोगों की मदद करना शामिल हैं। अब वह “बाइक-एम्बुलेंस दादा” के नाम से जाने जाते हैं और चौबीसों घंटे मुफ्त एम्बुलेंस बाइक फेरी सेवा प्रदान करते हैं ताकि ग्रामीणों के लिए चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंचना आसान हो सके।
पिछले 25 वर्षों से, करीमुल चाय बागान में काम करने और अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों से रोगियों को मुफ्त में अस्पतालों में ले जाने के बीच अपना समय गुजार रहे हैं। करीमुल को हर महीने 5,000 रुपये मिलते हैं, जिसमें से आधा वह अपनी बाइक के लिए पेट्रोल और गरीबों के लिए दवाएं खरीदने में खर्च करते हैं । करीमुल मरीजों को जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी और मालबाजार के अलावा अन्य स्थानों पर ले जाता है। 2017 में, उन्हें हमारे देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। उनके जीवन से प्रेरित होकर, पूर्व पत्रकार और लेखक बिस्वजीत झा ने बाइक एम्बुलेंस दादा किताब भी लिखी जिसे पेंगुइन ने प्रकाशित किया है ।