साल 2004 । जगह थी हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध हिल स्टेशन धर्मशाला का चरान खड्ड क्षेत्र । एक शरणार्थी तिब्बती भिक्षु, जाम्यांग, ने जब वहां गरीब बच्चों को सड़क पर भीख मांगते और कूड़ेदान में मैला ढोते देखा था तो वह उनकी दुर्दशा देख अंदर से हिल गये । उस वक्त उन्होंने तय किया कि वह इन गरीब बच्चों के लिए कुछ करेंगे । जामयांग ने अपनी चिंताओं को कुछ अन्य तिब्बती शरणार्थियों और पश्चिमी देश में रह रहे अपने दोस्तों और परिचित लोगों के साथ साझा किया और इस तरह जन्म हुआ टोंगलेन ट्रस्ट का। टोंग-लेन नाम तिब्बती शब्दों से आया है जिसका अर्थ है ‘देना’ और ‘लेना’, यह विचार है कि करुणा के माध्यम से व्यक्ति दूसरों के दुख और दर्द में हिस्सा लेता है और साथ ही साथ प्यार और दया भी देता है।
शुरुआती दौर में उन्होंने चरान खड्ड की झुग्गी बस्ती में ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने धर्मशाला शहर में ही एक फ्लैट किराए पर लेकर बालक और बालिकाओं के लिए हॉस्टल शुरू किया। उन्होंने शहर के स्कूलों से संपर्क कर इन बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलवाने की कोशिश की पर ज्यादातर स्कूलों ने मना कर दिया । जामयांग को पता था कि ये काम इतना आसान नहीं होगा । आखिरकार एक निजी स्कूल ने इन गरीब बच्चों के लिए अपने दरवाजे खोले। कुछ सालों बाद 2011 में टोंगलेन ट्रस्ट ने अपना खुद का आवासीय सुविधा से युक्त स्कूल धर्मशाला के समीप के गाँव सराह में शुरू किया। अब तक इस स्कूल से हज़ारों की संख्या में गरीब बच्चे पढ़ लिख कर अपने जीवन को बेहतर बना चुके है ।
हाल ही में पिंकी नाम की एक बच्ची एमबीबीएस की पढाई उत्तीर्ण कर डॉक्टर बन गई है। पिंकी कभी धर्मशाला शहर में ही अपनी मां के साथ भीख मांगती थी।इस स्कूल के अलावा टोंगलेन ट्रस्ट कई अन्य तरीकों से भी गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करता है । कई बेरोजगार युवकों को इलेक्ट्रिशियन, टेलरिंग और ड्राइविंग जैसे कौशल सिखाये जाते है। इसके अलावा ट्रस्ट मोबाइल क्लीनिक बस भी चलाता है जिसमें सभी प्रकार के टेस्ट और एक्स-रे समेत इलाज की पूरी सुविधा उपलब्ध है । जाम्यांग जैसे ना जाने कितने और लोग है जो चुपचाप समाज के लिए कुछ ना कुछ योगदान दे रहे है । अगर आप भी ऐसे किसी व्यक्ति को जानते है जो अपने आस पास के लिए कुछ अच्छा कर रहे है तो हमसे साझा करें ।