पढ़ाई- लिखाई में बेशक आप अव्वल हो न हो, अगर आपमे किसी चिज़ को करने की तमन्ना और लगन है, तो कामयाबी आपके कदम चुमेगी और दुनिया आपको सर आँखों पर बिठायेगी. कई ऐसे लोगों ने अपनी कामयाबी की इबारत खुद लिखी है और जतला दिया है कि संकल्प से सभी रास्ते खुल जाते है और मंजिल भी मिल जाती है. बस कोशिशों का सिलसिला थमना नहीं चाहिए, बल्कि आहिस्ते ही सही लेकिन बढ़ना चाहिए.
ऐसे ही एक लड़के की कहानी है, जो दो बार अपनी कक्षा में फेल हो गए थे और उलाहने -ताने भी उन्हें मिलते थे. लेकिन, कहते है सभी अपना मुक्कदर खुद लिख सकते है. उनमे बस जज्बा होना चाहिए. ऐसा ही फितरत पाल रखी थीं दिपेन्द्र गोयल ने जिसने ZOMATO नाम की फ़ूड डिलेवरी एप बनाया, जिसे शायद ही कोई नहीं जनता हो. आप खाना आर्डर करेंगे तो लाल टी शर्ट पहने इनके डिलेवरी बॉय आपके दरवाजे पर दस्तक दें देंगे.
मुक्तसर के रहने वाले दिपेन्द्र पढ़ाई में उतने अच्छे नहीं था क्लास 6 और 11में फेल कर गए थे पढ़ाई -लिखाई में उनका उतना मन नहीं लगता था. लेकिन, घर वाले भला कहां मानने वाले थे. बेहतर पढ़ाई के लिए उन्होंने दिपेन्द्र को चंडीगढ़ भेज दिया. इसके बाद उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई की और इसका महत्व समझा. इसका नतीजा रहा की IIT जैसे कड़े इम्तिहान को पास कर गए और IIT दिल्ली में दाखिला मिल गया. उन्होंने इतने प्रतिष्ठित इंजीनियरग कॉलेज में पढ़ाई तो कर रहें थे, लेकिन मन उन्हें किताबों में नहीं बल्कि जिंदगी में कुछ बड़ा करने का करता था. दुकानों -होटलों की भीड़ अक्सर उनके मन को कचोटती थीं की कैसे इनकी समस्या का समाधान निकाला जाए.
दिपेन्द्र गोयल IIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद “बेन एंड कंपनी” में कंसलटेंट के तौर पर अपनी जॉब शुरू की, जिंदगी तो चल रही थी. लेकिन मन मुताबिक नहीं चल रहा था.एक दिन लंच टाइम में देखा तो कैंटीन में काफ़ी भीड़ जमा थीं और लोग लम्बी कतारे लगाकर आर्डर करने के इंतजार में थे. और मेनू देखकर आर्डर करना चाह रहें थे पर हो नहीं पा रहा था.इससे वक़्त भी बर्बाद हो रहा था और मन में उबन भी हो रही थीं. इस दिक्क़त को दूर करने के लिए कैफ़े का मेनू इंटरनेट पर डालकर ऑनलाइन कर दिया. इससे लोगों को काफ़ी सहूलियत हुई और दिपेन्द्र की इस पहल और सोच की तारीफ भी खूब मिली.
लेकिन, इस आईडिया से दिपेन्द्र के दिमाग़ में एक स्टार्टअप करने का आईडिया आया. इसके लिए उसने एक वेबसाइट बनाने की सोची जिसमे लोगों को रेस्टुरेंट की जानकारी मिले और इसके मेनू की जानकारी भी लोगों को मिले की आखिर क्या -क्या रेसिपी है.
अपने इस बिज़नेस की बात उसने अपने दोस्त पंकज चड्डा से साझा की. जिसकी उसने जमकर तारीफ की और साथ देने का वादा किया.सन 2008 में दोनों दोस्तों ने फूडिबे डॉट कॉम की शुरुआत की, जो समय के साथ काफ़ी लोकप्रिय हो गया.इस पोर्टल में लोगों को रेस्टुरेंट के साथ -साथ उसके भोजन और उसकी कीमत को आसानी से मालूम पड़ने लगी. जो काफ़ी लोगों के लिए सहायक साबित होने लगा.
पहले इस वेबसाइट में दिल्ली एनसीआर के रेस्टुरेंट को जोड़ा, फिर 12 और शहरों के रेस्टुरेंट को इसमे शामिल किया गया.बाद में इनकी मेहनत की बदौलत क़रवां बढ़ता ही चला गया और दुनिया के 23 देश इसमे जुड़ते गए.
इस कामयाबी के बाद दिपेन्द्र ने नौकरी छोड़ने का मन बनाया ताकि पूरा ध्यान इसमे लगाया जा सके. बतया जाता है कि घर वाले इसे लेकर राजी नहीं थे. वो नहीं चाहते थे की दिपेन्द्र एक जमी -जमाई नौकरी छोड़े. हालांकि, इस वक़्त उनकी वाइफ कंचन ने खूब साथ दिया और कदम से कदम मिलाकर चली.
2010 में इस पोर्टल का नाम जोमाटो रखा गया ताकि लोगों की जुबान पर ये आसानी से नाम आए.
जोमाटो की लोकप्रियता भी खूब बढ़ी. इसमे तमाम रेस्टुरेंट की जानकारी के साथ -साथ उसकी रेसिपी और उसकी प्राइस भी इसमे लिखी हुई रहती, जिसमे इसकी तस्वीर भी लगी रहती है.इसके वेबसाइट के साथ एप के जरिए आप अपने नजदीकी रेस्टुरेंट से अपना खाना आर्डर करा सकते है. इसमे ऑनलाइन पैमेंट की भी सुविधा है.लोगों की सुविधा के लिए इसमे मुफ्त होम डिलीवरी भी मुहैया करायी जाती है.
आज दिपेन्द्र की जोमाटो में 24 देशों के तक़रीबन 10 हजार से अधिक शहरों में 2 लाख से अधिक रेस्टुरेंट जुड़े हुए हैं.जो इंग्लिश के साथ ही तुर्की, स्पेनिश, पुर्तगाली, इंडोनेशियाई समेत कई भाषाओं में है.
दोस्तों अपने पढ़ा कि दिपेन्द्र गोयल की एक सोच से कैसे फ़ूड डिलेवरी की एक बड़ी कंपनी जोमाटो खड़ी हो गई. बस उनमे एक जुनून, जज़्बा और जोश कुछ अलग करने का था. इसी का नतीजा रहा की आज जोमाटो किसी पहचान की मुहताज़ नहीं है.आप अपने शहरों में इसके डिलीवरी बॉय को खाना पहुंचाते हुए देखें होंगे.आपको बता दें जोमाटो शेयर बाजार में भी लिस्टेड है और एक लार्ज कैप कंपनी बन गई है.पिछले एक साल में इसने बढ़िया रिटर्न्स भी अपने निवेशकों को दिया है.
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