जब तक जीवन है तब तक समस्याओं का सिलसिला लगा रहता है. इससे तो शायद ही किसी का पीछा छूटने वाला है.लेकिन, कुछ लोग ऐसे जीवट और संकल्प के माहिर इंसान होते है,जो समस्याओं में ही अपना भविष्य तलाश लेते हैं.जिसे देखकर दुनिया भी तारीफ करते नहीं थकती और नाम लेती हैं.एक मिसाल और शख्सियत के तौर पर.
ऐसी ही कहानी हैं एक लड़के की, जिसे दिवाली के त्यौहार के मौक़े पर बस में छूट गई और मायूस होकर घर लौट आया था. इसके बाद इस निराशा में ही उसने एक तरकीब यानि बिजनेस आईडीया ढूंढ़ लिया और बना डाला टिकट बुकिंग एप रेड बस. आप इस टिकट बुकिंग एप से जरूर परिचित होंगे.
जिसे लड़के ने उस एप RedBus को बनाया उसका नाम फणिन्द्र सामा उर्फ़ फ़णि था, जिसे बेंगलुरु से हैदराबाद के लिए बस पकड़नी थी, लेकिन बस स्टैण्ड ट्रैफिक जाम रहने से वक़्त पर नहीं पहुंच सका और बस छूट गई. उसने टिकट भी नहीं कटवाया था. आखिरकार उसे अपने कमरे में भारी मन से लौटना पड़ा. मन में मलाल और इस परेशानी को हल कैसे किया जाए. इसके लिए उसके मन में लगातार सवाल उठ रहें थे.आखिरकार निराशा के गर्त से ऊपर उठकर उसने बस टिकट के लिए एक टिकट एप बनाने की ठानी. और फिर क्या था. फणि ने रेडबस एप बनाने का सपना और इसे साकार करने के लिए कदम बढा दिया, जिसमे उसकी मदद उसके दो दोस्त पडराजू और सुधाकर ने की.जिस कमरे में वे रहते थे. वही अपनी ऑफिस सेट की और रेड बस का पोर्टल शुरू किया, इस बिज़नेस के लिए उन्होंने किसी तरह 5 लाख रूपये इकट्ठा करके शुरुआत की.
शुरुआत में इनलोगों ने खूब मेहनत की लेकिन टिकट नहीं बिक रहें थे. काफ़ी मशशकत के बाद पांच टिकट बिके.इसके लिए वे ऑफिस के बाहर घंटों खड़े रहकर टिकट के लिए मुसाफिरों की तलाश करते. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और सभी टिकट बेच दिए. इस सफलता के बाद फिर उनकी गाड़ी निकल पड़ी और उनका टिकट प्लेटफार्म का एप रेडबस चल निकला.
अब उन्हें बिजनेस बढ़ाने के लिए 30 लाख रूपये की जरुरत थी. फंडिंग के लिए सभी काफ़ी हाथ पैर मार रहें थे. अंत में 2007 में उन्हें सीड फण्ड के जरिये 30 लाख की जगह 3 करोड़ मिल गए. लेकिन ये रकम तीन साल में मिलने वाली थी. फणि ने इस पैसों का बेहद समझदारी से खर्च किया और बढ़िया ऑफिस बनाया.
इसके बाद 500 साझेदारों के साथ हाथ मिलाया. जिसके बाद रेड बस का दबदबा अच्छा -खासा मार्केट में बन गया.5000 रुट्स पर रेडबस के जरिये टिकट बुकिंग होने लगी.2009 में कंपनी को और पैसों की जरुरत थीं, तो फिर उन्हें 2.5 मिलियन डॉलर की एक बड़ी फंडिंग मिली . इसके बाद इनकी राह और आसान हो गई और रेडबस ने मार्केट में अपना सिक्का अच्छे से जमा लिया.बाद में रेडबस मेक माय ट्रिप का भी हिस्सा बन गई. रेडबस सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि सिंगापुर, मलेशिया, कोलाम्बिया, इंडोनेशिया समेत कई देशों में भी अपनी सेवा दे रहा हैं. अभी तक रेडबस करोड़ो मुसाफिरों को अपनी सर्विस दें चुका हैं और एक मिसाल बन चुका हैं.
RedBus की इस जर्नी से समझा जा सकता हैं कि अगर इंसान चाह ले तो सफलता मिलना निश्चित हैं. फणिनन्द्र सामा उर्फ़ फणि ने ऐसा करके दिखा दिया. आखिर जज़्बा और जुनून क्या चीज होती है.